Plus One Hindi Textbook Answers Unit 2 Chapter 6 ब्लैक : स्पर्श जहाँ भाषा बनता है

Kerala State Board New Syllabus Plus One Hindi Textbook Answers Unit 2 Chapter 6 ब्लैक : स्पर्श जहाँ भाषा बनता है Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

Kerala Plus One Hindi Textbook Answers Unit 2 Chapter 6 ब्लैक : स्पर्श जहाँ भाषा बनता है

प्रश्न 1.
ब्लैक फिल्म देखें। (फिल्म देखते वक्त इन मुद्दों पर बारीकी से ध्यान दें)

  • पात्रों का अभिनय
  • संवादों की प्रासंगिकता
  • दृश्यों की विविधता
  • कथा का प्रवाह

प्रश्न 2.
फिल्म के आधार पर लिखें।

  • सबसे आकर्षक दृश्य
  • सबसे श्रेष्ठ अभिनेता
  • सबसे हृदयस्पर्शी संवाद
  • सबसे दर्दनाक दृश्य

प्रश्न 3.
फिल्म के निम्नांकित अंगों के लिए गुणवत्ता के अनुसार दें (अधिकांश)

  • कथा
  • पटकथा
  • अभिनय
  • छायांकन
  • साज-सज्जा
  • ध्वन्यांकन
  • संपादन
  • निदेशन

फिल्म से समीक्षा की ओर…

ब्लैक : स्पर्श जहाँ भाषा बनता है अनुवर्ती कार्य

प्रश्न 1.
समीक्षा में किन-किन बिंदुओं की चर्चा की गई है?
उत्तर:
पटकथा, संवाद-योजना, छायांकन, संपादन-कार्य, छायांकन, ध्वन्यांकन, अभिनय, गीत, प्रार्श्व संगीत आदि की चर्चा की गयी है।

प्रश्न 2.
किसी एक मनपसंद फिल्म की समीक्षा लिखें।
उत्तर:
माणिक्यकल्ल् – फिल्मी समीक्षा
निर्माता : गिरीश लाल
निर्देशक : एम्. मोहनन्
गीत : अनिल पनचूरान्, रमेश काविल्
संगीत : एम्. जयचन्द्रन्

कलाकार : पृथ्वीराज, संवृता सुनिल, नेडुमुड़ी वेणु आदि गौरी मीनाक्षी सिनेमा के बैनर में बनाया हुआ ‘माणिक्यकल्ल्’ फिल्म एक अच्छा फिल्म है। इसका निर्माता है श्री गिरिश लाल। फिल्म का निर्देशन किया है श्री एम्. मोहनन् ने। ‘माणिक्यकल्ल्’ एक विचारात्मक फिल्म है। फिल्म की कहानी इस प्रकार है: वणान्मला सरकारी हाईस्कूल को एक गौरवशाली अतीत था। वर्तमान शिक्षामंत्री इस स्कूल के पूर्व विध्यार्थी थे। लेकिन, आज इस स्कूल की स्थिति अत्यन्त दयनीय हो गयी है। आज स्कूल में पढ़ते हैं केवल 50 छात्र। स्कूल में 8 अध्यापक पढ़ाने केलिए सरकार से नियुक्त हैं। वे अपने सरकारी वेतन समय पर लेने केलिए अत्यंत उत्सुक रहते हैं। लेकिन, पढ़ाने में कोई रुचि नहीं लेते। वे अपने अपने निजी काम-धंधों में लगकर पैसे कमाने में इच्छुक रहते हैं।

इस अवसर पर विनयचंद्रन् (पृथ्वीराज) नामक एक नया अध्यापक सरकार नियुक्ति से स्कूल में नौकरी करने के लिए आता है। नया अध्यापक छात्रों की उन्नति की ओर बड़ा ध्यान देने लगता है। पहलेपहले सह अध्यापकों से उसे कोई सहयोग नहीं मिलता। लेकिन, विनयचंद्रन् अपने सह-अध्यापकों को इमानदार और जिम्मेदार रहने को प्रभावित करते हैं। धीरे-धीरे स्कूल में बड़ा परिवर्तन आने लगता है।

विनयचंद्रन् को चांदनी नामक अध्यापिका बड़ा साथ देती है। वह स्कूल की शारीरिक-शिक्षा अध्यापिका थी समय की गति में विनयचंद्रन और चांदनी के बीच प्यार होने लगता है। हेडमास्टर करुणाकर कुरुप्प (नेडुमुड़ी वेणु) विनयचंद्रन् को अपने अधिकार और प्यार से बड़ा प्रोत्साहन देते हैं। अंत में स्कूल में बड़ा बदलाव आता है। स्कूल में शत-प्रतिशत विजय होती है।

पृथ्वीराज और संवृता अपनी अभिनय-कला से अनेक रोचक मुहूर्त देते हैं। इन्द्रन्स्, जगदीश, कोट्टयम् नसीर, सलीम कुमार आदि अभिनेताओं ने अपनी अपनी भूमिकाओं के साथ दर्शकों को हँसाने में भी सफल हुए हैं।

अनिल पनचूरान और रमेश काविल द्वारा लिखे गीत बहुत कुछ कहते हैं और परदे पर उनको देखते समय उनका प्रभाव और बढ़ता जाता है। एम्. जयचंद्रन् का संगीत भी अच्छा है। श्रेया गोशाल की आवाज़ में ‘चेम्परत्ती’…. बहुत सुरीली हो गयी है।

फिल्म की फोटोग्राफी पी. सुकुमार ने बहुत ही प्रभावशाली ढ़ग से की है। रंजन एब्राहम् का संपादन (Editing) कुछ और अच्छा होना था। इससे फिल्म को अनावश्य लंबाई से बचा सकता था।

‘माणिक्यकल्ल’ में अच्छा संदेश शामिल हुआ है। आमिर खान की ‘तारे ज़मीन पर’ की याद हमें इस फिल्म से होती है।

प्रश्न 3.
फिल्म समीक्षा की परख, मेरी ओर से

  • फिल्म का संक्षिप्त परिचय दिया है।
  • अभिनय की खूबियाँ/कमियाँ बताई हैं।
  • निदेशक की क्षमता को अंकित किया है।
  • फिल्म के अन्य बिंदुओं की (पटकथा, संवाद-योजना, छायांकन, ध्वन्यांकन, संपादन, गीत आदि) चर्चा की है।
  • अपने विचारों का समर्थन किया है।

प्रश्न 4.
मान लें, ब्लैक फिल्म थियटर में 100 दिन पूरी करते वक्त पोस्टर में यह अनुशीर्षक (Caption) निकलता है।

संजय लीला भंसाली के निदेशन में अमिताभ बच्चन और राणी मुखर्जी के अभिनय-जीवन की अनमोल प्रस्तुति
‘ब्लैक’
101 वें दिन की ओर…

पोस्टर में छपने के लिए इसी प्रकार के विभिन्न अनुशीर्षक लिखें।
उत्तर:
i) सौ दिन के बाद भी ब्लैक भीड़ भरी।
ii) 101 वें दिन ……… 350 शो……. गजब! गजब!!
iii) सारा शहर ‘ब्लैक’ के पीछे

प्रश्न 5.
किसी एक मनपसंद फिल्म की समीक्षा लिखें।
उत्तर:
i) तारे ज़मीं पर – फिल्मी समीक्षा
बच्चे ओस की बूंदों की तरह एकदम शुद्ध और पवित्र होते हैं। वे कल के नागरिक हैं, लेकिन दुःख की बात है कि बच्चों को अनुशासन के नाम पर तमाम बंदिशों में रहना पड़ता है। आठ वर्षीय ईशान अवस्थी (दर्शील सफ़ारी) का मन पढ़ाई के बजाय कुत्तों, मछलियों और पेटिंग में लगता है। उसके मातापिता चाहते हैं कि वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकलता। ईशान घर पर माता-पिता की डाँट खाता है और स्कूल में शिक्षकों की। कोई भी यह जानने की कोशिश नहीं करता कि ईशान पढ़ाई पर ध्यान क्यों नहीं दे रहा है। इसके बजाय वे ईशान को बोर्डिंग स्कूल भेज देते हैं।

खिलखिलाता ईशान वहाँ जाकर मुरझा जाता है। वह हमेशा सहमा और उदास रहने लगता है। उस पर निगाह जाती है आर्ट टीचर रामशंकर निकुंभ (आमिर खान)की। निकुंभ उसकी उदासी का पता लगाते हैं और उन्हें पता चलता है कि ईशान बहुत प्रतिभाशाली, लेकिन डिसलेक्सिया की बीमारी से पीड़ित है। उसे अक्षरों को पढ़ने में तकलीफ़ होती है। अपने प्यार और दुलार से निकुंभ ईशान के अंदर छिपी प्रतिभा को सबके सामने लाते हैं।

कहानी सरल है, जिसे आमिर खान ने बेहद प्रतिभाशाली तरीके से परदे पर उतारा है। पटकथा की बुनावट एकदम चुस्त है। छोटे-छोटे भावनात्मक दृश्य रखे गए हैं, जो सीधे दिल को छू जाते हैं। ईशान का स्कूल से भागकर सड़कों पर घूमना, ताज़ा हवा में साँस लेना, बिल्डिंग के कलर होते देखना, फुटपाथ पर रहनेवाले बच्चों को आज़ादी से खेलते देखकर उदास होना, बरफ़ का लड्डू खाना जैसे दृश्यों को देख कई लोगों को बचपन की याद ताज़ा हो जाएगी।

सभी बच्चों का दिमाग और सीखने की क्षमता एक-सी-नहीं होती। फ़िल्म देखते समय हर दर्शक इस बात को महसूस करता है। ईशान की भूमिका में दर्शील सफ़ारी इस फ़िल्प की जान है। अमीर खान मध्यांतर में आते हैं और छा जाते हैं। टिस्का चोपड़ा (ईशान की मम्मी) ने एक में की बेचैनी को उम्दा तरीके से पेश किया है। विपिन शर्मा (ईशान के पापा), सचेत इंजीनियर और सारे अध्यापकों का अभिमय भी अच्छा है। प्रसून जोशी द्वारा लिखे गीत बहुत कुछ कहते हैं और परदे पर उनको देखते समय उनका प्रभाव और बढ़ जाता है। शंकर-अहसान-लॉय का संगीत भी अच्छा है। फ़िलम की फोटोग्राफी बहुत ही प्रभावशाली हैं।

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ii) पूस की रात – फिल्मी समीक्षा
किसान का जीवन कितना करुणापूर्ण है! खेती से उसको कोई सुख नहीं मिला। पूरा जीवन गरीबी में गुज़रता है। इन बातों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करनेवाली एक सुंदर फिल्म है ‘पूस की रात’। प्रेमचंद की एक छोटी कहानी गुलजार के निदेशन में फिल्म के रूप में पर्दे पर आयी है। फिल्म की कहानी इस प्रकार है।

एक गरीब किसान हल्कू अपनी पत्नी के साथ रहता है। खेत में फसल पकने लगी है। रात के समय खेत में नीलगायों के आने की संभावना है। इसलिए हल्कू रात में खेत का पहरावा करता है। हड्डियाँ भी तोडनेवाली ठंड में वह अपने कुत्ते का साथ गीत गाकर या बातें करके ठंड से बचने की कोशिश करता है। गर्मी के लिए वह चिलम फूंकता भी है।

खेती के लिए महाजनों से लिए पैसे वापस देने में भी वह असमर्थ है। हल्कू की पत्नी के मत में खेती की अपेक्षा मज़दूरी करना ही अच्छा है। एक ठंडी रात में हल्कू ठंड सह न सका। वह कुछ सूखे पत्ते लाकर आग जलाकर उसके साथ नाच गाकर सर्दी से बचकर लेटा। आग की गर्मी के कारण उसको गहरी नींद मिली। पर उस रात में आग फैलकर सारी फसल जल गयी। सबेरे पत्नी आकर हल्कू को उठाते वक्त ही उसने देखा कि सारा खेत जल चुका है। रोती हुई पत्नी से हल्कू ने कहा कि ‘अच्छा हुआ…. आज से रात में ठंड सहने की ज़रूरत नहीं है।’

हल्कू की ये बातें उसकी निराशा से उत्पन्न हैं। खेत में कठिन काम करने पर भी या सभी कठिनाइयाँ सहने पर भी किसान को कोई फायदा नहीं मिलता है। इन बातों को स्पष्ट रूप में गुलज़ार ने अपनी फिल्म ‘पूस की रात’ में व्यक्त किया है। छोटे-छोटे भावनात्मक दृश्य रखे गए हैं जो सीधे दिल को छू जाते हैं। कुत्ते का साथ हल्कू का वार्तालाप, चंद्रमा की सुविधा का वर्णन, नीलगायों को भगाने की आवाज़ आदि के प्रसंगानुकूल दृश्य दर्शकों को मज़ा देनेवाले ही हैं।

किसान के दैन्य दिखाने के लिए फटे हुए कंबल को दिखाते वक्त उसकी गरीबी हमारे मन पर चोट लगाती है। प्रेमचंद किसानी जीवन की दर्दनाक कहानी लिखनेवाला कहानीकार है। उनकी एक कहानी को गुलजार ने ज्यादा चमकदार बनाकर फिल्म के रूप में प्रस्तुत किया है। रघुवीर करण और मानसी उपध्याय ने अपने अपने पात्रों को उज्वल बनाए। दोनों का अभिनय देखकर हम विस्मित हो जाते हैं। फिल्म की शुरुआत में रूपकुमार का एक अच्छा गीत है। दिन और रात के समय के दृश्यों की फोटोग्राफी भी अव्वल दर्जे की है। संपादन अच्छा हुआ है। पटकथा भी बहुत अच्छा हुई है। साज-सज्जा अनुकूल ही है। ध्वन्यांकन उत्तम कोटि की है।

Plus One Hindi ब्लैक : स्पर्श जहाँ भाषा बनता है Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित सहायक बिंदु के आधार पर किसी एक मनपसंद फिल्म की समीक्षा लिखिए। सहायक बिंदुः

  • फिल्म का कथासार
  • पात्रों का अभिनय
  • निदेशक की भूमिका
  • पटकथा, संवाद, छायांकन, गीत आदि
  • फिल्म की समग्रता पर अपना दृष्टिकोण

उत्तर:
माणिक्यकल्ल् – फिल्मी समीक्षा
निर्माता : गिरीश लाल
निर्देशक : एम्. मोहनन्
गीत : अनिल पनचूरान्, रमेश काविल्
संगीत : एम्. जयचन्द्रन्

कलाकार : पृथ्वीराज, संवृता सुनिल, नेडुमुड़ी वेणु आदि गौरी मीनाक्षी सिनेमा के बैनर में बनाया हुआ ‘माणिक्यकल्ल्’ फिल्म एक अच्छा फिल्म है। इसका निर्माता है श्री गिरिश लाल। फिल्म का निर्देशन किया है श्री एम्. मोहनन् ने। ‘माणिक्यकल्ल्’ एक विचारात्मक फिल्म है। फिल्म की कहानी इस प्रकार है: वणान्मला सरकारी हाईस्कूल को एक गौरवशाली अतीत था। वर्तमान शिक्षामंत्री इस स्कूल के पूर्व विध्यार्थी थे। लेकिन, आज इस स्कूल की स्थिति अत्यन्त दयनीय हो गयी है। आज स्कूल में पढ़ते हैं केवल 50 छात्र। स्कूल में 8 अध्यापक पढ़ाने केलिए सरकार से नियुक्त हैं। वे अपने सरकारी वेतन समय पर लेने केलिए अत्यंत उत्सुक रहते हैं। लेकिन, पढ़ाने में कोई रुचि नहीं लेते। वे अपने अपने निजी काम-धंधों में लगकर पैसे कमाने में इच्छुक रहते हैं।

इस अवसर पर विनयचंद्रन् (पृथ्वीराज) नामक एक नया अध्यापक सरकार नियुक्ति से स्कूल में नौकरी करने के लिए आता है। नया अध्यापक छात्रों की उन्नति की ओर बड़ा ध्यान देने लगता है। पहलेपहले सह अध्यापकों से उसे कोई सहयोग नहीं मिलता। लेकिन, विनयचंद्रन् अपने सह-अध्यापकों को इमानदार और जिम्मेदार रहने को प्रभावित करते हैं। धीरे-धीरे स्कूल में बड़ा परिवर्तन आने लगता है।

विनयचंद्रन् को चांदनी नामक अध्यापिका बड़ा साथ देती है। वह स्कूल की शारीरिक-शिक्षा अध्यापिका थी समय की गति में विनयचंद्रन और चांदनी के बीच प्यार होने लगता है। हेडमास्टर करुणाकर कुरुप्प (नेडुमुड़ी वेणु) विनयचंद्रन् को अपने अधिकार और प्यार से बड़ा प्रोत्साहन देते हैं। अंत में स्कूल में बड़ा बदलाव आता है। स्कूल में शत-प्रतिशत विजय होती है।

पृथ्वीराज और संवृता अपनी अभिनय-कला से अनेक रोचक मुहूर्त देते हैं। इन्द्रन्स्, जगदीश, कोट्टयम् नसीर, सलीम कुमार आदि अभिनेताओं ने अपनी अपनी भूमिकाओं के साथ दर्शकों को हँसाने में भी सफल हुए हैं।

अनिल पनचूरान और रमेश काविल द्वारा लिखे गीत बहुत कुछ कहते हैं और परदे पर उनको देखते समय उनका प्रभाव और बढ़ता जाता है। एम्. जयचंद्रन् का संगीत भी अच्छा है। श्रेया गोशाल की आवाज़ में ‘चेम्परत्ती’…. बहुत सुरीली हो गयी है।

फिल्म की फोटोग्राफी पी. सुकुमार ने बहुत ही प्रभावशाली ढ़ग से की है। रंजन एब्राहम् का संपादन (Editing) कुछ और अच्छा होना था। इससे फिल्म को अनावश्य लंबाई से बचा सकता था।

‘माणिक्यकल्ल’ में अच्छा संदेश शामिल हुआ है। आमिर खान की ‘तारे ज़मीन पर’ की याद हमें इस फिल्म से होती है।

ब्लैक : स्पर्श जहाँ भाषा बनता है Summary in Malayalam

Plus One Hindi Textbook Answers Unit 2 Chapter 6 ब्लैक स्पर्श जहाँ भाषा बनता है 4
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Plus One Hindi Textbook Answers Unit 2 Chapter 6 ब्लैक स्पर्श जहाँ भाषा बनता है 6

Plus One Hindi Textbook Answers Unit 2 Chapter 6 ब्लैक स्पर्श जहाँ भाषा बनता है 7
Plus One Hindi Textbook Answers Unit 2 Chapter 6 ब्लैक स्पर्श जहाँ भाषा बनता है 8

ब्लैक : स्पर्श जहाँ भाषा बनता है Glossary

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